शुक्रवार, 13 अगस्त 2010

गुलामी

देखो अल्ताफ दो दिन बाद 15 अगस्त है। पूरे कैंपस को साफ करवा दो। वो सामने घास कटवा देना...वहां शाम को पार्टी का इंतजाम करना है। काकटेल तो अंदर ही करवा देंगे। इस तरफ पेड़ के नीचे दिन में झंडारोहण होना है...यहां एक भी पत्ता दिखाई न पड़े। गेट पर मेहमानों के आने के लिए कालीन डलवाना.... और हां अंदर कार्यक्रम के दौरान आसपास की बस्ती सें कोई बच्चा या आदमी न आने पाए... पिछली बार अपने साथ तमाम गंदगी ले आए थे...नामाकूल...तुम्हें और आदमियों की जरूरत पड़े तो बाहर से बुला लेना...
साहब सब हो जाएगा ...आप चिंता न करें... पर साब एक बात बतानी थी पिछले साल के तीन सौ रुपए अभी तक मजदूरों को नहीं दिए हैं।
यार तुम लोग एक एक पैसे के लिए मरते हो... तीन सौ रुपए एक साल से याद है तुझे... यहां इतना काम पड़ा है तू तीन सौ रुपल्ली के लिए रो रहा है... इस बार दूसरे मजदूर ले कर आना... उन्हें काम धाम कुछ नहीं आता...रुपए लेने के लिए चले आते हैं...साले
ठीक है साब...पर मजदूर सौ रुपए दिहाड़ी से नीचे नहीं मानते।
सौ रुपए...यह तो मजदूरी नहीं ब्लैक मेलिंग है...उन्हें 75 रुपए के हिसाब से देना और बिल मुझे दिखा कर बनाना...बाद में हिसाब ने बिगड़ जाए
साब 75 रुपए में तो नहीं हो सकेगा...तो फिर क्या पूरा खजाना खोल दूं उनके लिए...काम ही कितना है...करना है तो करें
ठीक है साब मैं अपने बच्चों को ही काम पर लगा लूंगा...पर साब पिछले साले के तीन सौ रुपए तो मिल जाएगें न
ठीक है तू अपने बच्चों को लगाएगा तो डेढ सौ रुपए ले जा...पिछला हिसाब बराबर।ठीक है साब...

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