मंगलवार, 13 मई 2014

आओ न कुछ बात करें

किसका घूंसा - किसकी लात, आओ न कुछ बात करें...
होती रहती है बरसात, आओ न कुछ बात करें।

अगर मामला और भी है तो वो भी बन ही जाएगा,
छोड़ो भी भी ये जज्बात, आओ न कुछ बात करें।

नदी किनारे शहर बसाना यूं भी मुश्किल होता है,
गांव के देखे हैं हालात, आओ न कुछ बात करें।

इक इक- दो दो घूट गटक कर सैर करेंगे दुनिया की,
पैसे देंगे कुछ दिन बाद, आओ न कुछ बात करें।

बूंद-बूंद ये खून बहा कर क्यों प्यासे रह जाते हो,
बांटे जीवन की सौगात, आओ न कुछ बात करें।

तुम गैरों के हो गए तो क्या! प्यार हमेशा रहता है,
कौन रहा जीवन भर साथ, आओ न कुछ बात करें।

नींदों को पलकों पर रख कर छत पर लेटे रहते थे,
फिर आई वैसी ही रात, आओ न कुछ बात करें।

कमर तोड़ती है सरकार चाहे जिसको कुर्सी दो,
कैसा फूल और किसका हाथ, आओ न कुछ बात करे।

मंगलवार, 6 मई 2014

अपने घर के आंगन में


कुुछ अपने ठहरा ले भइया, अपने घर के आंगन में।
जैसे सांप छिपा ले भइया अपने घर के आंगन में।।

रोज- रो ज की पत्थर बाजी से अब तू घबराता है।
पाकिस्तान बसा ले भइया अपने घर के आंगन में ।।

कंधा देने को मुर्दे को, मिलते हैं अब लोग कहां।
खुद की चिता सजा ले भइया, अपने घर के आंगन में।।

खेल-खेल में नोट छापना, कलमाड़ी से पूछ जरा।
एक आयोजन करवा ले भइया, अपने घर के आंगन में ।।

गुलेल से निकले इक कंकड़ ने आंख फोड़ दी बच्चे की।
और आम उगा ले भइया अपने घर के आंगन में।।

तूने मां- बाप को पीटा तेरा बेटा देख रहा।।
इक कुटिया बनवा ले भइया अपने घर के आंगन में ।।