शनिवार, 7 दिसंबर 2013

अब राहुल का क्या होगा


राहुल गांधी को 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले कई चुनौतियां का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी में उनकी हैसियत औपचारिक तौर पर नंबर दो होने के बावजूद उनकी कई महत्वाकांक्षी योजनाएं परवान नहीं चढ़ पाई हैं और लगभग सभी राज्यों में कांग्रेस राजनीतिक जमीन सिकुड़ती जा रही है। आज आए चुनाव नतीजे भी कुछ ऐसी ही कहानियां कह रहे हैं।
 विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी ने कई प्रयोग किए हैं। लेकिन आज उनके प्रयोगशाला में तैयार पौधों के फल भी खट्टे ही निकले। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कामयाबी नहीं मिली है, अब इसके बाद कांग्रेस का वह धड़ा मजबूत होगा जो राहुल गांधी के स्टाइल को 'कॉरपोरेट पॉलीटिक्सÓ करार देता है।
देश के चार अहम राज्यों-मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली के विधानसभा चुनावों का परिणाम राहुल के लिए इस समय सबसे बड़ी चुनौती के रूप में देखे जा रहे थे। तमाम सर्वे  कह रहे थे कि इन चार राज्यों में कांग्रेस कम से कम तीन राज्यों में सीधे तौर पर हार सकती है। हालांकि, सर्वे के नतीजे कई बार गलत भी निकलते हैं, लेकिन इन राज्यों से मिल रहे संकेत किसी कांग्रेसी को परेशान करने के लिए काफी थे। राहुल गांधी के लिए इन राज्यों विधानसभा चुनाव उतने ही महत्व रखते हैं, जितनी अहमियत 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की थी। चार अहम राज्यों में अगर राहुल दो में भी कांग्रेस को जीत दिलवाने में कामयाब रहते तो उनका रुतबा बढ़ता, लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नहीं।
कांग्रेस के उपाध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी ने कांग्रेस में संगठन से लेकर टिकट बंटवारे के तौर तरीकों में कई बड़े बदलाव करने की कोशिश की है। इसे कई कांग्रेसी नेता उनकी 'स्टाइलÓ बताते हैं, जिससे उनमें आस जगी है। राहुल गांधी ने इंटरव्यू के आधार पर टिकट बांटने की कोशिश की है। इस सिस्टम के तहत उम्मीदवारों को अपनी पृष्ठभूमि के बारे में बताना होता है। इसमें आपराधिक रिकॉर्ड, वित्तीय हालत, राजनीतिक गतिविधियों और उस विधानसभा क्षेत्र के बारे में ब्योरा देना होता है, जिसके लिए वे टिकट मांग रहे हैं।  
 कांग्रेस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि इस तरह का फॉर्मेट बनाने के पीछे राहुल गांधी की कोशिश यह थी कि किसी भी नेता को उम्मीदवार तय करने की प्रक्रिया पर हावी न होने दिया जाए। लेकिन कांग्रेस के ही सूत्र यह भी बताते हैं कि राहुल का नया सिस्टम पूरी तरह से काम नहीं कर पाया। मध्य प्रदेश का उदाहरण देते हुए आलोचक कहते हैं कि इस सूबे में बड़ी तादाद में सीटें दिग्विजय सिंह कैंप में चली गईं। कुछ लोग यह भी कहते हैं कि दिग्विजय सिंह के बेटे ने उम्मीदवारों की आधिकारिक लिस्ट आने से पहले ही नामांकन दाखिल कर दिया था। इसी तरह से छत्तीसगढ़ में टिकट बंटवारे में अजीत जोगी की चली।  
कांग्रेस भले ही सीधे तौर पर पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के मुकाबले न खड़ा करती हो, लेकिन जनता इस संघर्ष को इसी रूप में देखती है। जानकार बताते हैं कि अगर विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के बाद अब राहुल गांधी के नेतृत्व और उनके सिस्टम पर गंभीर सवाल उठेंगे। बीजेपी के प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी के मुताबिक, 'कांग्रेस के सामने साख का संकट है। इतना ही नहीं मोदी की तुलना में राहुल को बहुत कम रेस्पॉन्स मिला। इसलिए हमारे पास दो सकारात्मक बातें हैं जबकि कांग्रेस के पास कोई ऐसी बात नहीं है।Ó विधानसभा चुनाव में हार का एक मतलब यह भी हो सकता है कि कांग्रेस में राहुल गांधी की अगुवाई में चल रही बदलाव की प्रक्रिया धीमी पड़ जाएगी और सोनिया गांधी फिर से कमान संभाल लेंगी।  
राहुल गांधी की नई स्टाइल की इस बात को लेकर भी आलोचना होती है कि उनका तरीका ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दिए जाने से नहीं रोक पाए जिनका रिकॉर्ड आपराधिक था। साथ ही वे ऐसे उम्मीदवारों की संख्या भी कम नहीं कर पाए जो वंशवाद के आधार पर अपना दावा ठोकते हैं। राहुल इन दोनों किस्म के लोगों को टिकट दिए जाने के खिलाफ बोलते रहे हैं। लेकिन इन बातों को सच की जमीन पर पूरी तरह से उतार पाने में वे नाकाम रहे हैं।  उत्तर प्रदेश में कांग्रेस दो दशकों से ज्यादा समय से सत्ता से बाहर है। लेकिन आगे भी कांग्रेस की राह आसान नहीं लगती है। राहुल गांधी के गृह राज्य उत्तर प्रदेश में 2012 में विधानसभा चुनाव में हार से अब तक कांग्रेस उबर नहीं पाई है। उस हार के लिए राहुल गांधी ने जिम्मेदारी लेते हुए कहा था कि यूपी में उनकी पार्टी का संगठन कमजोर है और उसे मजबूत करने के लिए अब वे उत्तर प्रदेश पर ध्यान देंगे। लेकिन खुद के कुछ दौरों, जनसभाओं और संगठन में ऊपरी तौर पर फेरबदल करने के अलावा राहुल अब तक कुछ ज्यादा नहीं कर पाए हैं। उनकी ताज़ा कोशिशें के नतीजे लोकसभा चुनाव में दिखाई पड़ेंगे। राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने रायबरेली और अमेठी में विकास के कुछ काम कराए हैं और कुछ बड़ी योजनाओं की आधारशिला रखी है। लेकिन उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों पर ऐसी कृपा नहीं बरस रही है। बुंदेलखंड में राहुल गांधी ने बदलाव के वादे किए थे। लेकिन उस क्षेत्र में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखाई देता है।
गांधी परिवार का 'गढÓ माना जाने वाला रायबरेली राहुल गांधी की मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र है। लेकिन पिछले कुछ सालों में केंद्र सरकार की ओर से कराए जा रहे विकास के काम यहां के कई लोगों को नाकाफी लग रहे हैं। इससे भी ज्यादा की चिंता की बात यह है कि भोजन की गारंटी के कानून का बखान राहुल और सोनिया करते हुए थकते नहीं हैं। लेकिन रायबरेली के वोटर और किसान अर्जुन रेवल कहते हैं, 'मुझे सस्ता अनाज नहीं चाहिए। यह खैरात है। हमें दान नहीं चाहिए। हमें अस्पताल चाहिए जिसमें डॉक्टर हों। हमें सड़क और बिजली चाहिए। हमें कोई ऐसा नेता चाहिए जो महंगाई रोक सके।Ó रायबरेली में कई लोगों को मोदी के विकास के नारे लुभा रहे हैं। यह राहुल और उनकी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। अगर राहुल ने तेजी से नुकसान कम करने की कोशिश नहीं की तो उनके लिए लखनऊ 'दूरÓ ही रहेगा।  
 कांग्रेस में बने धड़ों में हो रहे झगड़े को रोकने के लिए राहुल गांधी ने कई बार कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया है। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कमलनाथ और अजय सिंह के बीच गुटबाजी, राजस्थान में अशोक गहलोत और जोशी, छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और कांग्रेस के अन्य नेताओं के बीच गुटबाजी, हरियाणा में हुड्डा और उनके विरोधियों के बीच चल रही खींचतान को रोकने के लिए राहुल गांधी ने कई बार सार्वजनिक तौर पर बयान दिया है और नेताओं को डांट लगाई है। लेकिन बावजूद इसके पार्टी के भीतर इस तरह के संघर्ष रुक नहीं रहे हैं।

बुधवार, 24 जुलाई 2013

जो अच्छे और सच्चे हैं उनके प्रति सद्भावनाएं, और जो फ्राड है उनकी घोर भर्त्सना के साथ

वही द्रोपद की बेटी है वही मीरा की तानें हैं,
वही राधा की पायल है, वहीं किस्से पुराने हैं।
कहां हो श्याम कलयुग में जरा आओ तो फिर देखो,
तुम्हारे नाम पर घर-घर खुली कितनी दुकानें हैं।।

तुम्ही हो एक सच्चे और जगत आधार हो फिर तुम,
गुरु किरपा यदि हो तो संमंदर पार हो फिर तुम।
गुरु जी रोज टीवी पर यही समझाते रहते हैं, 
करी न गांठ ढीली तो बड़े मक्कार हो फिर तुम।।

यहां दौलत से यारी है, वहां औरत भी प्यारी है,
नशे में भक्त हैं इनके, चढ़ी सिर पर खुमारी है।
नहीं समण कोई इतिहास इनका ढूंढकर देखो,
कभी धरती पर ये थे भार , अब धरती से भारी हैं।।

कमंडल तज दिया,इनके तो पानी भांड भरते हैं,
कोई सेवक को जड़ता है, तो कुछ शिष्या पर मरते हैं।
जो इनकी हार्डडिस्कें चैक हो जाएं तो खुल जाएं
कि बाबा कैसे -कैसे रोज करम और कांड करते हैं।

रविवार, 21 जुलाई 2013

केदारनाथ उदास है

जिन्दा तो साथ थे न थे, मरकर तो साथ हैं।
बरसा के मौत अब, उदास केदारनाथ है।

चखा तक नहीं हैं उसने निवाला भी उसके बाद,
कहते हैं जिसका वास ही शमशानघाट है।

झुकता ही क्यों फिर सर कहो कातिल जो होता वो,
नाथों का नाथ उस जगह बैठा अनाथ है।

राहत में भी चाहत है कमाने की इस तरह,
मानो न मानो यही तो विश्वासघात है।

तांडव कहो, सैलाब कहो, तीसरा नेत्र कहो,
अपनी तो राय... बाढ़ में मानव का हाथ है

पिता का पत्र बेटे के नाम

प्रिय बेटे,
जुग जुग जियो! उत्तराखण्ड के हाल तो तुमने देख सुन ही लिए होंगे। तुम्हारे साथ के बहुत से वीर जवानों ने हमारे भाई बहनों को बचाया, निकाला। फिर भी उनके आने से पहले कई लोगों को मौत छीन ले गई। तुम्हारी बड़ी बेटी नीलिमा उस दिन के बाद से लापता है। हमने आसपास के जंगलों में उसे बहुत ढूंढा, नदियों के किनारे भी तलाश किया। अब आधे गांव में बिछे मलबे को तलाशना बाकी है। मन तो नहीं मानता लेकिन आस टूट रही है, बेटा। तुम्हारी मां और बहू तब से न कुछ खा रहे हैं और न ही पी रहे हैं। बहू नीलिमा की स्कूल की किताबों को समेट कर उसका इंतजार कर रही है। क्या कहूं उससे...समझ में नहीं आ रहा। अस्सी साल का हो गया ऐसी विपदा पहले न कभी देखी न सुनीं। हमारा आधा मकान भी बाढ़ में ढेर हो गया। आधे मकान में रहने में डर लगता है। बाढ़ ने पशुशाला को उजाड़ दिया। रमिया गाय, उसकी बछड़ी सूमा, भैंस भानु सब बह गए। रमिया की लाश तो कुछ दूरी पर मलबे में मिल गई। बाकी पशुओं का कोई पता नहीं चला है। आपदा के बाद की कुछ रातें गांव वालों के साथ हमने भी घर से दूर जंगल में काटीं। अब वापस लौट आए हैं।

क्या करें बेटा यहां से जाएं, तो जाएं कहां। रात को जब नदी हुंकारें मारती है तो दिल सिंहर जाता है। बहू फिर उम्मीद से हैं, ऐसी हालत में यदि और तबाही होती है तो क्या होगा। तुम होते तो कुछ मदद मिलती, पर क्या करें तुम सेना में हो, तुम्हारे साथियों ने हमारे हजारों लोगों की जान बचाई है, तुम अपनी ड्यूटी अच्छी तरह से बजाना, सेना का कर्ज हम उत्तराखण्डी ऐसे ही उतार सकेंगे। बेटा गांव का पोस्ट आफिस भी बह गया है। तुम मनी आर्डर भेजोगे तो मिलेगा नहीं। हां सरकार ने कुछ रुपये दिए हैं। पूरे चार दिन चक्कर काटता रहा पटवारी के दफ्तर के, तब जा कर पैसे मिले। घर में साल भर के लिए जमा करके रखा हुआ गेहूं- चावल सब बर्बाद हो गया है। डर है आगे खाने के लाले न पड़ जाएं। पर तुम परेशान मत होना, जैसे गांव रहेगा वैसे ही हम गंवार भी रह लेंगे।

पड़ोस वाले सतिया चाचा का बाढ़ में पूरा मकान बह गया। घर के चार लोग मारे गए हैं । एक बुढिय़ा ही बची है। पागल सी हो गई है बेचारी। मरने वालों का नाम तक नहीं बता पा रही है वह। बेटा मस्कट में है। पता नहीं उसे मालूम भी है या नहीं। बेटा इस आपदा ने हमारे गांव को बर्बाद कर दिया। हर घर से एक दो लोग गायब हैं। खेतों में बड़े बड़े पत्थर और रेत भर गई है। लगता नहीं कि अब वहां फसल भी पैदा कर पाएंगे। गांव का रास्ता बह गया है। झूला पुल भी बह गया। कुछ नहीं बचा बेटा यहां। गांव के आधे लोग लापता हैं। सुना है कई लाशें गंगा में इलाहाबाद तक पहुंची हैं। कौन जाने हमारे कितने लोग होंगे उनमें। बेटा, जिस खेत में गेंहू कटने के बाद तुम लोग साथियों के साथ खेलते थे, वहां पशुओं की लाशें बिछी मिली है। गांव का भूमिया देवता का पुराना पेड़ भी बाढ़ को कैसे झेलता, वह भी जड़ से उखड़ गया। कई पक्षियों का ठिकाना था उस पर, और शिव जी का वो पुराना मंदिर! वहां तो मलबे के अलावा कुछ नहीं। देवता की पूजा में न जाने कौन सी कमी रह गई हमसे। नई फसल पर रोट चढ़ाते, पशुओं का दूध पहले अर्पित करते और हर काम में पहले उन्हें ही पूजते। लोग कह रहे हैं देवता नाराज हुए, कोई कहता है पड़ोसी देश ने किया यह और कोई कहता है बांधों की वजह से हुई तबाही, जितने मुंह उतनी बातें।

तुम्हारी मां बीमार रहती हैं, तुम्हारी बहन की शादी की तैयारी कर रहे थे, अब वह भी नहीं हो पाएगी। सुना है वहां भी तबाही हुई है। एक दिन पटवारी आये थे, लिखकर ले गए हैं कितना नुकसान हुआ, कहते हैं पैंसे मिलेंगे, इससे क्या होगा, मरने वालों की कमी पैसे ही पूरी कर देते तो मौत को खरीद न लेता इंसान। कुछ बिस्कुट के पैकेट और बोतल बंद पानी दे गए थे। मुंह पर बांधने को कपड़ा भी दिया। बोले महामारी का खतरा है। बेटा महामारी फैली तो शायद गांव में कोई भी न बचे। भगवान ऐसा नहीं करेंगे यही उम्मीद है। तुम्हारे दादा परदादा की सारी मेहनत पर कुछ ही देर में रेत बजरी फिर गई है। नया गांव कैसे बसेगा...समझ में नहीं आ रहा। बेटा, पहाड़ तो होते ही दर्द सहने के लिए हैं फिर पहाड़ी भी कैसे दर्द से दूर रहते। हमें पहाड़ों ने चुपचाप दर्द सहना सिखाया है और यह चिट्ठी लिखते समय आशा करता हूं कि तुम भी इस दर्द व दुख को सहने की हिम्मत जुटा पाओगे। सेना में हो मुश्किल घड़ी में कैसे हिम्मत जुटानी है तुम हमसे ज्यादा जानते हो। बेटा क्या लिखूं कुछ समझ नहीं आ रहा है। तुम अपना फर्ज अच्छी तरह से निभाना, जो होना था हो गया। अब तो बस भगवान का ही आसरा है। लौटोगे तो जरा छुट्टी लंबी लेकर आना, बहुत काम करना है यहां। बस अब नहीं लिखा जाता, दिल भर आता है।

भगवान बदरीविशाल तुम पर कृपा बनाए रखे।
तुम्हारा पिता।

(संकल्पना)

सारा शहर गवाह मेरी खुदकुशी का है

पहचान है सदियों की, मगर अजनबी सा है,
उसका हरेक दांव, तेरी दोस्ती सा है।
कातिल ने मुझे कत्ल किया अब के इस तरह,
सारा शहर गवाह मेरी खुदकुशी का है।।

मैं तोड़ तो दूं रस्म, मगर टूटती नहीं,
दुनिया में मेरा दिल अभी सौ फीसदी का है। 

भटकूंगा भला कब तक बेगाने से शहर में, 
ये घर किसी का है, तो वो छप्पर किसी का है। 

मां बाप की परवाह न जमाने का कोई खौफ
लगने लगा है देश ये 21वीं सदी का है।

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

टोडरिया का जाना जैसे एक स्तंभ का ढहना


 बहुत ज्यादा तो नहीं, लेकिन कम से कम सात साल उनके साथ काम करने का अवसर मिला। यह तब की बात है जब वे अमर उजाला हिमाचल के प्रदेश प्रभारी थे। वे शिमला में बैठते थे और मैं उन दिनों शिमला के दूर दराज के इलाके रोहड़ू में। वही रोहडू़ जहां से इससे पहले हिमाचल के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह चुनाव लड़ा करते। इस लिहाज से रोहड़ू प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र होता था। तब हमने देखा कि खबरों को किस तरह से सिर्फ शब्दजाल से रोचक बनाया जा सकता है। उनकी खबर लिखने की शैली बिरली थी। वे घटना का इतना सजीव वर्णन करते कि पाठक को लगता जैसे वह स्वयं ही घटना को अपनी आखों के सामने होता देख रहा हो। यही शैली हिमाचल के पाठकों को पसंद आई। जब आदरणीय दिनेश जुयाल ने मुझे रामपुर बुशहर पटका तो रोहडू, के साथ रामपुर और पूरा किन्नौर भी मेरे हिस्से आ गया। कुछ हिस्सा कुल्लू का भी अपने दायित्व क्षेत्र में आया। एक दिन श्री टोडरिया का पत्र प्राप्त हुआ। लिखा था पूरे हिमाचल की खबरें शिमला के माध्यम से जाती हैं सिर्फ रामपुर की खबरें सीधे चंडीगढ़ जाती है। इसलिए नई व्यवस्था के तहत अब रामपुर की खबरें भी शिमला के माध्यम से ही जाएगी। उन्होंने पहली फाइल की समय सीमा दोपहर बाद एक बजकर 55 मिनट रखी। मुझे कोर्ट केस के सिलसिले में सुदंरनगर जाना था सो कार्यालय की जिम्मेदारी रामप्रसाद मरालू को सौंप दी। अगले दिन में मंडी कोर्ट से निपट कर मंडी कार्यालय में पहुंचा तो रामप्रसाद का एक पत्र फैक्स किया। पत्र में लिखा था आपकी फाईल पिछले निर्देश के बावजूद पूरे पांच मिनट देरी से दोपहर बाद दो बजे पहुंची है। भविष्य में ख्याल रखें। इस पत्र से साफ हो गया कि टोडरिया जी समय के कितने पाबंद थे। हिमाचल में अमर उजाला की यात्रा के दौरान उनसे न जाने क्यों मधुर संबंध नहीं बन सके। मैंने अमर उजाला से संबंध तोड़ दिए उधर कुछ दिन बाद टोडरिया जी ने भी अमर उजाला से संबंध तोड़ कर दैनिक भास्कर के साथ नई पारी शुरू की। एक दिन भाई राकेश खंडूड़ी जी का संदेश मिला कि टोडरिया जी मुझसे मिलना चाहते हैं। मैं मिला तो उन्होंने कहा ...पिछली बातों को भूल जाओ और अब मैं तुम्हें तुम्हारे तेवरों का शहर देना चाहता हूं। सोलन!... मैंने कहा ठीक है, हम दोनों एक बार फिर एक साथ नई पारी शुरू करने को मैदान में उतर गए। खूब मजे आए काम करने के उनके साथ, लेकिन अच्छी खबर पर उनके एसएमएस दिल को बड़ी तसल्ली देते। लगता इतना बड़ा पत्रकार हमारी खबर को सराह रहा है। लेकिन जब वे किसी गलत खबर पर फटकारते तो घिग्घी बंध जाती, कुछ समय बाद वे भास्कर को अलविदा कह कर देहरादून चले आए और फिर उनका सानिध्य प्राप्त नहीं हुआ। आज सुबह उनके देहावसान की खबर भाई मदन लखेड़ा के माध्यम से मिली तो विश्वास ही नहीं हुआ। लगा जैसे पत्रकारिता का एक बड़ा स्तंभ अचानक ढह गया हो। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।
तेजपाल नेगी
समाचार संपादक
उत्तरांचल दीप

मंगलवार, 8 जनवरी 2013

सावधान! बापू उवाच रहे हैं

लो जी! अब बापू बोले और बोले तो क्या धांसू बोले। जब तक रील पूरी तरह नहीं धुल गई तब तक बोलते रहे। बोले- क्या जरूरत थी आधी रात को चलती बस में छेड़छाड़ कर रहे छह-छह मुस्टंडों की खिलाफत करने की। भैया बोल देती तो पसीज जाते बेचारे। भारतीय रिश्तों की मान मर्यादा को शराब के नशे में आदमी भूल थोड़े ही जाता है। आखिर अपनी बहन बेटियों का ख्याल तो उसे रहता ही है। फिर बस में मिली धर्म बहन को कैसे भूल जाते। बापू बोले- जब घिर ही गई थी छह पुरुषों के बीच तो हाथ जोड़ कर बचने का जुगाड़ कर लेती। शायद बापू ने हाल ही में अमरीश पुरी या फिर रंजीत की किसी हिंदी फिल्म का आधा सीन देख लिया। जिसमें अस्मत लूटने को तैयार विलेन के सामने हीरो की बहन हाथ जोड़ती हैं, गिड़गिड़ाती है...इससे आगे का सीन उन्होंने नहीं देखा। बस बापू लगे हवस के भूखे भेडिय़ों के सामने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने की नसीहत देने। बापू के भक्त गद्गद हैं, उनके प्रवचन पर। 
सवाल है भारतीय संस्कृति के यह ध्वज वाहक शायद वेदों में वर्णित मां चंडिका के रूप से भूल गए। गैंगरेप पीडि़ता अपने दुश्मनों पर विजय प्राप्त भले ही नहीं कर सकी हो लेकिन उसने लाखों अबलाओं को सबला जरूर बना दिया है। आने वाले दिनों में यही सबला बापू के लिए बला न बन जाएं....