रविवार, 21 जुलाई 2013

सारा शहर गवाह मेरी खुदकुशी का है

पहचान है सदियों की, मगर अजनबी सा है,
उसका हरेक दांव, तेरी दोस्ती सा है।
कातिल ने मुझे कत्ल किया अब के इस तरह,
सारा शहर गवाह मेरी खुदकुशी का है।।

मैं तोड़ तो दूं रस्म, मगर टूटती नहीं,
दुनिया में मेरा दिल अभी सौ फीसदी का है। 

भटकूंगा भला कब तक बेगाने से शहर में, 
ये घर किसी का है, तो वो छप्पर किसी का है। 

मां बाप की परवाह न जमाने का कोई खौफ
लगने लगा है देश ये 21वीं सदी का है।

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