किसी को याद न आए तो भला क्या की जे,
किसी की याद सताए तो भला क्या की जे।।
वो बेवफा है बेरुखा है दगाबाज है बहुत,
पर ये दिल उसको ही चाहे तो भला क्या की जे।।
मित्रों बिस्तर की सलवटों को प्रयोग मित्रों ने अब तक बेचैनी को जाहिर करने के लिए किया है, यहां नया उपयोग देखें....
अर्ज किया है.....
अजीब रात है करवटों में कटी जाती है,
सलवटें बिस्तर पर न आए तो भला क्या की जे।
देश के हालात बिगड़ रहे हैं या सुधर रहे हैं यह तो दावे के साथ हमारे नीति निर्धारक भी नहीं कर सकते...
देखें
ढकने के लिए लोग को कपड़ा नहीं नसीब।
विकास दर आकाश में जाए तो भला क्या की जे।
और अंत में
सौ-सौ की दिहाड़ी में सौ दिनों का रोजगार।
सांसद अस्सी हजार पाएं तो भला क्या की जे।।
मंगलवार, 14 सितंबर 2010
रविवार, 12 सितंबर 2010
प्रतिशोध
राजनीतिकारों पर और देश के गद्दारों
परसाठ साल किया हुआ शोध बाँट रहा हूँ।
गाँव के चौबारों में और दिल्ली के गलियारों में
आम आदमी का प्रतिशोध बाँट रहा हूँ ।
कुर्सी की आग में जलेंगे सारे एक दिन,
इसीलिये लोगों में विरोध बाँट रहा हूँ
जानता हूँ फ़र्ख न पड़ेगा कोई फिर भी,
हिजड़ों के गाँव में निरोध बाँट रहा हूँ॥
परसाठ साल किया हुआ शोध बाँट रहा हूँ।
गाँव के चौबारों में और दिल्ली के गलियारों में
आम आदमी का प्रतिशोध बाँट रहा हूँ ।
कुर्सी की आग में जलेंगे सारे एक दिन,
इसीलिये लोगों में विरोध बाँट रहा हूँ
जानता हूँ फ़र्ख न पड़ेगा कोई फिर भी,
हिजड़ों के गाँव में निरोध बाँट रहा हूँ॥
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
नानी एक कहानी कह
नानी एक कहानी कह
सबकी है जब अपनी रातें
नींद नहीं क्यों आनी कह...
कैसी मस्जिद कैसा मंदर
सबके लिए है एक समंदर
फिर क्यों झांसे में आ जाती
अब झांसी की रानी कह...
बोझ जमाने भर का लादे
चश्मे चढ़ते आखों पर
क्यों पन्नों में ही खो गई
बच्चों की शैतानी कह...
फूलों सी रंगत चहेरों की
कितने बरस हो गए देखी थी
फीके चेहरे, रूखी बातें
क्यों बेरंग जवानी कह...
क्यों रोते हैं बच्चे जग कर
रात-रात को नींदों से
तेरी कहानी से गायब हैं
क्यों राजा और रानी कह...
सबकी है जब अपनी रातें
नींद नहीं क्यों आनी कह...
कैसी मस्जिद कैसा मंदर
सबके लिए है एक समंदर
फिर क्यों झांसे में आ जाती
अब झांसी की रानी कह...
बोझ जमाने भर का लादे
चश्मे चढ़ते आखों पर
क्यों पन्नों में ही खो गई
बच्चों की शैतानी कह...
फूलों सी रंगत चहेरों की
कितने बरस हो गए देखी थी
फीके चेहरे, रूखी बातें
क्यों बेरंग जवानी कह...
क्यों रोते हैं बच्चे जग कर
रात-रात को नींदों से
तेरी कहानी से गायब हैं
क्यों राजा और रानी कह...
शनिवार, 4 सितंबर 2010
अपने घर के आंगन में
कुछ अपने ठहरा ले भइया अपने घर के आंगन में,
जैसे सांप छिपा ले भइया अपने घर के आंगन में।
रोज-रोज की पत्थरबाजी से अब तू घबराता है,
पाकिस्तान बसाले भइया अपने घर के आंगन में।
कंधा देने को मुर्दे को मिलते हैं अब लोग कहां,
खुद की चिता सजा ले भइया अपने घर के आंगन में।
खेल-खेल में नोट छापना कलमाड़ी से सीख जरा,
एक आयोजन करवा ले भइया अपने घर के आंगन में।
गुलेल से निकले एक कंकड ने आंख फोड दी बच्चे की,
और आम उगाले भइया अपने घर के आंगन में।
तूने मां-बाप को पीटा तेरा बेटा देख रहा,
इक कुटिया बनवाले भइया अपने घर के आंगन में।
जैसे सांप छिपा ले भइया अपने घर के आंगन में।
रोज-रोज की पत्थरबाजी से अब तू घबराता है,
पाकिस्तान बसाले भइया अपने घर के आंगन में।
कंधा देने को मुर्दे को मिलते हैं अब लोग कहां,
खुद की चिता सजा ले भइया अपने घर के आंगन में।
खेल-खेल में नोट छापना कलमाड़ी से सीख जरा,
एक आयोजन करवा ले भइया अपने घर के आंगन में।
गुलेल से निकले एक कंकड ने आंख फोड दी बच्चे की,
और आम उगाले भइया अपने घर के आंगन में।
तूने मां-बाप को पीटा तेरा बेटा देख रहा,
इक कुटिया बनवाले भइया अपने घर के आंगन में।
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