रविवार, 19 जून 2011

योगी हैं तो रोगी कैसे

व्यंग्य
बाबा
रामदेव और उससे ज्यादा दिल्ली पुलिस से माफीनामे के साथ

पिछले एक अरसे में देश न राजनिति का जो कुरूप चेहरा देखा है. उसे देखकर अच्छे से अच्छा भी सहम जाए. रामलीला मैदान दिल्ली में राम (देव) की सेना पर शीला की पुलिस न जिस तरह हमला किया उसे देख कर अन्ना जैसे अहिंसावादी व्यक्ति की आँखों में भी खून की बूंदे साफ दिखाई पड़ने लगी थी. खाकी से मार खाए रामदेव कुछ ही घंटों में पहले हरिद्वार और फिर कुछ ही दिनों में हिमालयन इंस्टिट्यूट जा पहुचे. बाबा के भक्तों की समझ नहीं आ रहा है की जो एक से एक आसान आसनों से शारीरिक और मानसिक परेशानियों को दूर करने का दावा करते थे व मात्र 6 दिन तक भी आहार नहीं छोड़ सके. इतने से ज्यादा दिनों तक साधारण सा भारतीय भी नवरात्र या रोज़ा रख सकता है. बाबा की इस हालत पर उनके कुछ ख़ास टाइप के भक्तों ने तर्क दिया की बाबा को आन्दोलन को लेकर तनाव था. पर यह तर्क भी बाबा के योग तर्क की कसौटी पर स्वयं खरा नहीं उतर सका.बाबा की इस हालत ने तो हमें भी दुखी कर दिया कम से कम दो तीन दिन न तो खाना अच्छा लगा न पीना. बस इस ही उधेड़ बुन में दिन कटने लगे की अगर पत्नी ने हमे दो दिन निराहार रख दिया तो हमारी हालत पूछने तो कोई निशंक या मोहल्ले का कलंक भी नहीं पहुचेगा. कल इन्हीं टाइप के सोच विचार के बीच सुबह का अखबार छान रहे थे कि शायद कोई खोजी पत्रकार खबर के माध्यम से हमारी जिज्ञासा शांत कर दे. तभी पडोसी मिश्रा जी आ धमके ...पत्नी को चाय का आर्डर झाड़ कर वे धम्म से सोफे पर बैठ गए और हमारे हाथों से अख़बार लगभग छिनते हुए बोले. क्या सुबह सुबह अखबार लेकर बैठे हो.
इन मिश्रा जी टाइप लोगों में यही खासियत होती है दूसरे की जिस चीज़ पर उनकी नज़र होती हैं उसे वे दुनिया की सब से निकीरष्ट चीज़ साबित का देते हैं. हम उनकी चालाकी से रोज़ ही दो चार होते हैं सो कुछ नहीं बोले. कुछ देर में पत्नी चाय ले आयी . मिश्रा जी शान से एक हाथ से चाय और दूसरे से अखबार को संभाल रहे थे और हम उनका मुंह ताकने का अलावा कर भी क्या सकते थे. आखिर घर आये इस बिना बुलाये मेहमान का अपमान भी ठीक नहीं. हमने बात शुरू की- क्या चल रहा है मोहल्ले में..
वो अखबार के पन्ने पर नज़र गढ़ाए हुए बोले ...मोहल्ले के बारे में ही पूछोगे या देश के हालात पर भी कभी नज़र डालते हो.
इस हमले से हम तिलमिला कर रह गए. मन में तो आया कि बोल दें की तुमने हमे राहुल गाँधी समझ रखा है पर मिश्रा जी गडकरी के रूप में आ गए तो क्या होगा और उम्र का लिहाज़ करना तो हमारी गौरवमयी परम्परा है..सो चुप्पी साधने में ही भलाई समझी. खैर चाय के चुस्कियों के साथ वे नार्मल होने लगे. जब माहौल बातचीत का बना तो हमने स्वामी रामदेव की हालत पर उनसे टिप्पणी मांग ली. मिश्रा जी तो जैसे तैयार हो कर ही आये थे...बोले अरे बाबा भूख वूख की वजह से बीमार नहीं पड़े हैं. इस के पीछे राज़ है....
हमे और चाहिए क्या था. एक बार तो सिर धुनने का मन हुआ कि जिस सवाल को लेकर इतने तनाव में जी रहे थे उसे एक बार मिश्रा जी के सामने पहले क्यों नहीं रख दिया. खैर अब तो जवाब खुद ही हमारे घर चल कर आया है...सो हम भी सुनाने को तैयार हो गए.
.मिश्रा जी ने चाय की अंतिम चुस्की ली और दिग्विजय सिंह स्टाइल में शुरू हो गए. बोले बाबा न तो पिटाई से घायल हैं ना ही भूख से बीमार .. दरअसल उन्हें कुछ घंटे दिल्ली पुलिस का मेहमान बनने का सौभाग्य जो मिला था.....
तो ? ......हमने एक शब्द में सवाल उनकी ओर ऐसे उछाला जैसे सचिन तेंदुलकर ने वर्ल्ड कप में पाकिस्तानी फील्डरों की ओर कैंच उछाले थे.
मिश्रा जी कोई पाकिस्तानी फील्डर तो नहीं जो हाथ में आया कैंच टपका दें. बोले- कभी दिल्ली पुलिस का पल्ले पड़े नहीं हो.. एक दो लफ्ज़ सुनोगे तो कई दिन पानी गले से नीचे नहीं जाएगा. अरे बाबा को पुलिस के जवानों ने अपनी भाषा में वो सब कुछ समझा दिया जो चार चार मंत्री नहीं समझा सके.
इस बार हमने मुंह से कुछ नहीं कहा पर आँखों से उनकी बात न समझ पाने की लाचारी जता दी.
अब क्या था मिश्रा जी का परम ज्ञान उनके होठों के रास्ते टपकने लगा. बोले- तुम भी न...अरे पुलिस के लोगों ने बाबा को अपने ही अंदाज़ में समझा दिया की रामलीला मैदान से न जाने की जिद की तो हवालात में उनके साथ क्या क्या हो सकता है. सडकों पर पुलिस के हाथ में रहने वाला जनता का रछक डंडा थाने में जा कर कौन से रास्ते तलाश करने लगता है. एक दो पुलिसिया मन्त्र भी बाबा को सुना दिए होंगे तो कोई आश्चर्य नहीं. बस इससे ज्यादा तो बाबा झेल भी नहीं पाते. उन्होंने आगे जोड़ा- यही वजह है कि बाबा ने हरिद्वार में आ कर मैदान में डंडा चलाने वाले सब पुलिस वालों की बुराइयां की, लेकिन गाडी में मिले दरोगा को अच्छा बताया. हरिद्वार में भी बाबा के दिमाग में उस दरोगा का खौफ छाया था. और इसी खौफ ने बाबा को 6 दिनों में ही बेहोश कर दिया. आप तो जानते हो बाबा खुद ही कहा करते हैं की हर बीमारी व तनाव का इलाज योग है पर उन्होंने यह कभी नहीं कहा कि खौफ का कोई इलाज है..वो भी दिल्ली पुलिस का खौफ..... बाबा किसी को उस वार्तालाप के बारे में बता भी नहीं सकते सो 6 दिन बहुत थे बेहोश होने के liye.
कह कर मिश्रा जी चुप हो गए.
और हम सोच में पड गए कि मिश्रा जी की बात में दम तो है.....आखिर योगी रोगी कैसे हो सकता है.