रविवार, 18 अप्रैल 2010

बधाईयों के बीच तीन लावारिश लाशें



हरिद्वार के महाकुम्भ में अंतिम शाही स्नान के दिन हुई दुर्घटना के कारणों को लेकर उत्तराखंड रकार में भ्रम की स्थिति है। सरकार इसे भगदड़ का नतीजा मानने को तैयार नहीं है। हो भी क्यों यदि सरकार यह मन लेती है तो दुनिया दे सामने उसके महाकुम्भ आयोजन की भद्द पिट जाएगी। अपनी प्रतिस्ठा को बचने के लिए सरकार ने यह दांव खेला है। दरअसल जिस आयोजन को अद्भुत बताते हुए अंतिम शाही स्नान से दो दिन पहले मुख्य मंत्री नोबेल पुरष्कार दिए जाने की बात कर रहे थे। उस आयोजन के अंतिम दिन सारी व्यवस्थाएं ही चौपट हो गयीं। सरकार के अनुसार घटना में सिर्फ सैट लोग ही मारे गए। इनमे से दो तो एक बाबा की गाड़ी के नीचे आकर मरे। बाकी भीड़ ने कुचल कर मार दिए। हैरत वाली बात तो यह है की सरकार यह भी मानने को तैयार नहीं है कि पुलिस ने भीड़ को भगाने के लिए कोई लाठी चार्ज भी किया. हैं न अजीब बात। सरकार यह तो मानती है कि किसी बाबा की गाड़ी के नीचे आकर एक बच्ची की मौत हुई। यह भी मानती है की उस समय पुल पर हजारों लोग भी थे। साथ में यह भी मानती है की दुर्घटना के बाद वहां भीड़ जुट गयी और लोग बाबा व उनके साथियों को पीटने पर उतारू हो गए। लेकिन यह नहीं मानती की पुलिस को वहां लाठी चार्ज करना पड़ा, तो फिर भगदड़ का कारण क्या रहा यह सरकार को नहीं मालूम। इसकी जाँच हो रही है..... वाह री सरकार। सब कुछ दिख रहा है पर देखना कुछ भी नहीं। १४ अप्रैल को हुई इस घटना में मरे हुए तीन लोगों की पहचान अभी तक नहीं हो सकी है। यानी उन्हें पहचानने वाला अभी कोई नहीं आया। कौन जाने कोई बचा भी है नहीं। दरअसल इस घटना में मरने वालों की संख्या पर भी सवालिया निशान लगाये जा रहे हैं। घटना के समय वहां उपस्थित लोगों के अनुसार भगदड़ के समय दर्जनों लोग पुल की रेलिंग टूटने के कारण सीधे गंगा में जा गिरे थे। सरकार का दावा है कि नदी में कुल पांच लोग गिरे थे। फिर जिन शवों को अब तक पहचान के लिए रखा जा रहा है. उनके परिजन कहाँ गए। पुलिस के दावे पर भी अब शक होने लगा है। उसका कहना था कि हर पुल पर और चौराहों पर ख़ुफ़िया कैमरे लगाये गए थे तो उस साधु कि शिनाख्त में इतनी देरी क्यों हुई। अब पुलिस का कहना है कि उन्हें घटना के समय कि फुटेज मिल गयी है। तो भगदड़ या लाठी चार्ज कि फुटेज कहाँ गयी। मतलब साफ है प्रतिष्ठा की लडाई में पुलिस या सरकार बहुत कुछ देखना ही नहीं चाहती। लगता है कि सीधे स्वर्ग पाने की लालसा में न जाने कहाँ से हरिद्वार आये लोगों के शवों को भी लावारिश के रूप में जलाये जाने का दुर्भाग्य झेलना पड़ेगा। सरकार ने तो पांच- पांच लाख रुपये दे कर अपना पल्लू यह कहते हुए छुडा लिया कि मेला अद्भुत रहा। सरकार को बधाइयाँ मिलने का क्रम जारी है. लेकिन तीन लाशें ऑंखें बंद होने के बावजूद सब कुछ देख रहीं हैं। आप और हम भी.......
photo by Virendra Negi








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