कुछ अपने ठहरा ले भइया अपने घर के आंगन में,
जैसे सांप छिपा ले भइया अपने घर के आंगन में।
रोज-रोज की पत्थरबाजी से अब तू घबराता है,
पाकिस्तान बसाले भइया अपने घर के आंगन में।
कंधा देने को मुर्दे को मिलते हैं अब लोग कहां,
खुद की चिता सजा ले भइया अपने घर के आंगन में।
खेल-खेल में नोट छापना कलमाड़ी से सीख जरा,
एक आयोजन करवा ले भइया अपने घर के आंगन में।
गुलेल से निकले एक कंकड ने आंख फोड दी बच्चे की,
और आम उगाले भइया अपने घर के आंगन में।
तूने मां-बाप को पीटा तेरा बेटा देख रहा,
इक कुटिया बनवाले भइया अपने घर के आंगन में।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति के प्रति मेरे भावों का समन्वय
कल (6/9/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
प्रिय बंधुवर तेजपाल जी
जवाब देंहटाएंअच्छा रंग जमा रहे हैं …
खेल-खेल में नोट छापना कलमाड़ी से सीख जरा,
आयोजन करवा ले भइया अपने घर के आंगन में
पूरी रचना रोचक है । बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर प्रेम से तीर मारा है भाई साहब आपने. गहरे तक वार करती कविता, तीव्र व्यंग्य. धन्यवाद भाई.
जवाब देंहटाएंअपने घर के आंगन में जो कार्य किये जाते हैं ,उनमे से कुछ का बहुत सुंदर प्रस्तुतीकरण |बहुत अच्चा व्यंग |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
bahoot hi rochak lagi kavita
जवाब देंहटाएंaap sabhi ka aabhar
जवाब देंहटाएंumada bhai..........ik alag ahsas
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