गुरुवार, 18 अगस्त 2011

देख तमाशा टोपी का




अन्ना के आंदोलन ने देश को अपने जाल में पूरी तरह से जकड़ लिया है। इसे खादी की टोपी का जादू ही कहा जाएगा कि पूरे देश में इतना बड़ा आंदोलन हो रहा है लाखों करोड़ों लोग उसमें सिरकत कर रहे हैं, लेकिन कहीं से भी अब किसी भी प्रकार की हिंसा की कोई खबर नहीं है। हालत यह है कि इस आंदोलन का श्रेय लेने की भी कहीं कोई होड़ नहीं दिख रही। खादी का जादू ऐसा कि आजाद और उच्छश्रृंखल समझी जाने वाली युवा पीढ़ी भी 74 वर्षीय एक बूढ़े के पीछे आ खड़ी हुई है। यही इस आंदोलन की सबसे बड़ी ताकत है। त्योहारों वाले इस देष में जहां छोटे-छोटे मेलों के आयोजन के लिए विशेष पुलिस बल की आवश्यकता होती है, लेकिन इस आंदोलन में दिल्ली में सरकार द्वारा पैदा किए गए कृत्रिम खतरे को देखते हुए तैनात की गई पुलिस के अलावा कहीं भी अतिरिक्त पुलिस बल की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। संभवतः आजादी के आंदोलन के बाद यह पहला आंदोलन है जहां पुलिस और आंदोलनकारियों में 72 घंटों के दौरान कोई टकराव नहीं हुआ है। सब तिरंगा उठाए नारे लगाते हुए अपने में खोए अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे हैं। पहाड़ हो या मैदान, गांव हो या शहर हर जगह बस एक ही आवाज ....मैं भी अन्ना। संभवतः इस आंदोलन के अहिंसक होने का एक यह भी प्रमुख वजह है कि जंग में शामिल होने वाला हर सिपाही अपने आप में सेनापति है। सबके कंधों पर आंदोलन को सफल बनाने की जिम्मेदारी बराबर रूप से बंटी है। बच्चे हो या बूढ़े तिरंगा हाथ में आते ही सबका जोश समान हो जाता है, सब बराबर के जिम्मेदार हो जाते हैं। एक खासियत यह भी है कि जींस और नए फैशन की शर्ट पर युवा गांधी टोपी पहन कर आंदोलन में सिरकत कर रहे हैं। है न नई और पुरानी संस्कृति का विस्मयकारी मेल....अद्भुत!
रैलियों में जाने के लिए अपने वाहनों में निकलने वाले लोग यह नहीं सोचते कि मंहगे होते जा रहे पेट्रोल का खर्च कैसे वहन करेंगे। यही नहीं अंजाने साथी आंदोलनकारियों के लिए पानी से लेकर खाद्य, दवाई व पोस्टर आदि का इंतजाम भी वे स्वयं ही कर रहे हैं। केंद्र सरकार की प्रभुसत्ता को जानने -समझने के बावजूद आम आदमी की भीतर का जोश इस समय हिलोरे मार रहा है। अन्ना की गिरफ्तारी के बाद उपजे आक्रोश का ही नतीजा है कि आंदोलन दो दिनों के भीतर ही चहुमुखी हो गया। जनता से मिलने वाले इस अपार समर्थन की तो स्व्यं अन्ना को भी उम्मीद नहीं रही होगी तो सरकार क्या खाक उम्मीद करती। यही वजह है कि लोगों के भारत माता की जय की दहाड़ों के आगे कपिल सिब्बल से लेकर दिग्विजय सिंह तक की आवाज किसी बिल्ली की म्याऊं की तरह प्रतीत हो रही है। यह अन्ना की खादी टोपी का ही प्रताप है कि अपने आप को देश का भाग्य विधाता समझने वाले नेता अब उनके सामने आने से भी कतरा रहे हैं। बाबा रामदेव को छलने वाले नेता अन्ना के सामने न पड़ कर नौकरशाही के माध्यम से अपनी बात उन तक पहुंचा रहे हैं। खबर तो यह भी है कि घबराई सरकार अब अन्ना के सामने अपने कांग्रेस के युवराज को शांति दूत बनाकर भेजने की तैयारी कर रही है। सोनिया ने तो पहले ही अन्ना को दो टूक सुना कर उनसे बातचीत के रास्ते बंद कर लिए थे। जो भी हो सरकार ने अन्ना को दांव खेलने से पहले ही चित्त करने की जो रणनीति अपनाई थी, अन्ना ने उल्टा दांव चल कर सरकार पर ही घोड़ा पछाड़ आजमा दिया। प्लान बी के अभाव में सरकार जमीन सूंघने को विवश हो गई, जबकि अन्ना का प्लान बी अभी बाकी है। अब तक बाबा रामदेव के माध्यम से भारतीय लंगोटी का कमाल देख कर हैरान परेशान दुनिया अब भारतीय धोती-टोपी के चमत्कार को नमस्कार कर रही है। अभी आंदोलन का अगला चरण बाकी है जब अन्ना अपने समर्थकों के बीच बैठ कर आंदोलन चलाएंगे। तब दुनिया देखेगी बूढ़े भारतीय की असली ताकत, हिंदुस्तानी जवानों का जोश और मातृशक्ति का दृढ़ संकल्प।

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