योजना
बरसात का मौसम बीते छह महीने हो गए, सरकार बाढ़ से प्रभावितों की मदद के आंकड़े प्रचारित करने में लगी थी। प्रदेश के गृह सचिव अधिकारियों की बैठक ली।विकास योजनाओं के पूरा न होने से उनका गुस्सा सातवें आसामान पर था। जिलाधीशों को फाइनली आदेश दिया- समाज के आखिरी व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ पहुंचाने के हर संभव प्रयास किए जाएं। बैठक समाप्त हुई। जिलाधिकारियों ने अपने-अपने जिलों में पहुंच कर उपमंडलाधिकारियों की बैठकें बुलाई। सरकारी विकास योजनाओं को समाज के अंतिम आदमी तक पहुचाने के निर्देश जारी कर दिए गए। एसडीएम भी अपने कार्यालय में दो घंटे तक तहसीलदार, पटवारियों की बैठक कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक विकास योजनाओं का लाभ पहुंचाने की रणनीति बनाने में लगे रहे। बाहर दरवाजे पर बरसात से हुए नुकसान की राहत पाने के लिए इतवारु दो घंटे से साहब के द्वार पाल से एसडीएम साहब से मिलने देने की मन्नतें करता रहा। साहब के बैठक में व्यस्त होने के कारण वह एक बार फिर बिना राहत लिए वापस लौट गया....अंदर बैठक में समाज के अंतिम व्यक्ति की खोज जारी थी।
योजना का कार्यान्वयन आजकल ऐसे ही चलता है...
जवाब देंहटाएंआपने जो समस्या उठाई है कई बार ऐसी विषम स्थिति बनती है...पर आपको जानकर अजीब लग सकता है कि बिना प्रक्रिया के काम करना भी शासन में संभव नहीं.इस बात को यूँ भी समझा जा सकता है कि कोई न्यूज चैनल वाला जितने समय में बाढ़ कि न्यूज लेता है उतने समय में कम से कम एक आदमी को बचा सकता है .....हर इंसान के काम और काम के तरीके तय हैं. विरोध क लिए विरोध नहीं होना चाहिए
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