बुधवार, 14 अप्रैल 2010
कहाँ खो गए घिन्दुडा -घिन्दुड़ी
एक वक्त था कि जब गाँव में माँ सुबह भात पकाने के लिए चावल साफ करती तो न जाने कितनी चिड़ियाएँ माँ के आसपास मंडराने लगतीं। बचपन में इन चिड़ियों को उनके असली नाम से ज्यादा हम घिन्दुडा घिन्दुड़ी नाम से ही जानते थे। उन्हें उड़ाने के लिए हम उनके पीछे भागते तो माँ कहती कि यह सबसे निर्दोष चिड़ियाएँ हैं इन्हें मत सताओ। हम माँ का कहना अनमने मन से मान तो लेते लेकिन एक न एक दिन उन्हें पकड़ने कि प्रतिज्ञा अवश्य हर डांट के बाद करते। कुछ बड़े हुए तो अक्ल ने साथ देना शुरू किया। पता चला हमारे घरों में बेफ़िक्र घूमने वाले घिन्दुडा घिन्दुड़ी इन्सान के साथ इतने घुलने मिलने वाले गिने चुने पंछियों में से एक है। उनसे दोस्ती करने का मन करने लगा। कभी कभी माँ के हाथ से चांवलों से निकलने वाले धानों को हम ले कर इन मासूम सी दिखने वाले पंछियों को हम स्वयं ही डाल देते.....घिन्दुडा -घिन्दुड़ी एक- एक धान के लिए आपस में लड़ते तो हमें बुरा लगता..माँ कहती कि पछी तुम्हारी तरह पढ़े किखे थोड़े ही हैं कि खाने के लिए न लड़ें। तब हमे लगता कि खाने के लिए भी कोई लड़ाई होती है भला.... हम तो यही मानते थे कि लड़ाई तो सिर्फ खिलौनों के लिए ही हो सकती है। सचमुच हम तब भी बच्चे थे।
मुझे याद है कि एक दिन एक घिन्दुड़ी को चांवल खिलाते हमने एक बर्तन में ढक्कन रख hकर बंद कर लिया। तब में नहीं जानता था कि मैंने क्या किया है....घिन्दुड़ी बर्तन से बाहर कि लिए पर फद्फदाती रही लेकिन हमें उसमे मजा आ रहा था...उसके साथ हर रोज आने वाला एक टांग वाला घिन्दुडा आज काफी दूर बैठा था. शायद वह हमसे डर गया था... माँ ने देखा तो सच में उस दिन बहुत डांट पड़ी थी. माँ ने डांट फटकार के बाद घिन्दुड़ी को छोड़ने का शासनादेश जारी कर दिया.... और हमने इस आदेश का पालन भी किया... पर उपरी मन से। अगले दिन हमने लंगड़े घिन्दुडा और घिन्दुड़ी को अपने घर के आँगन में नहीं देखा... कई बार माँ कि आँखें भी उन्हें तलाश करती दिखाई पड़तीं ......मैं अपराध बोध से परेशान हो गया। पहली बार लगा कि पंछी भी अपना विरोध दर्ज कर सकते हैं।
आज इस घटना को लगभग ३० साल हो गए हैं.....कल फिर माँ ने चांवल साफ किये, लेकिन चांवल से निकले धान को खाने के लिए कोई घिन्दुडा -घिन्दुड़ी नहीं आये.....माँ कि आँखें कल भी उनकी तलाश कर रहीं थीं। मैनें माँ से कौतुहलवश पूछा घिन्दुडा घिन्दुड़ी नहीं आते आजकल ? माँ ने उदास स्वर में बताया कि उन्होंने उन्हें सालों से नहीं देखा। अब तो बड़ी बड़ी चोंच वाली काली बदसूरत सी चिड़ियाएँ आतीं हैं और हाथ से खाने का सामान छीन जातीं हैं । आज अखबार की एक खबर पर नजर ठहर गयी। खबर थी की गौरेया के पुर्नवास के लिए लकड़ी के घरौंदे बांटे जा रहे हैं। मैं काफी देर सोचता रहा काश मैंने उस दिन गौरेया को न पकड़ा होता तो माँ को घिन्दुड़ी की तलाश न करनी पड़ती. यही गलती आज हमे भारी पड़ रही है.
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accha likha hai aapne swagat hai aapka
जवाब देंहटाएंअति उत्तम......!!!!
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