आस्था में कितना बल है यह शायद अब तक मुझे मालूम नहीं था, लेकिन शदी का पहला महाकुम्भ देख कर उस महा शक्ति के आगे नत मस्तक होने का मन करता है। जिसकी प्रेरणा से करोड़ों लोग पतित पावनी गंगा में एक डुबकी लगाने के लिए समुद्र की तरह हरिद्वार में उमड़ पड़ते हैं। इस बार भी १२ साल बाद हरिद्वार में लगने वाले महाकुम्भ में चार महीनों के दौरान लगभग ५ करोड़ लोगों ने गंगा में दुबकी लगाई। अंतिम शाही स्नान के दिन १४ अप्रैल को तो अकेले १ करोड़ 60लाख लोगों ने गंगा में डुबकी लगाई। इनमे से ५ लाख साधु संत थे। अंतिम शाही स्नान के दिन तो हरिद्वार में शायद ही कोई जगह होगी जहाँ हर हर गंगे के नारे लगाते लोग न दिखे हों। आपको विश्वाश नहीं होगा कि गंगा में सिर्फ तीन डुबकी लगाने के लिए श्रद्धालुओं को इतनी भीड़ में सरकते हुए १५-१५ किलो मीटर का फासला तय करना पड़ा। पर हद है आस्था को कि चिलचिलाती धूप में इतनी मुश्किल झेलने के बावजूद किसी ने उफ़ भी किया हो। हर तरफ गंगा मइया के जयकारे।
जुनून देखिये कि ऋषिकेश के त्रिवेणी घाट पर नहाने के लिए पहुंची मध्यप्रदेश की एक महिला ने गंगा को अर्ध्य दिया और गंगा की लहरों में लेट गयी। जब वह धारा में बहने लगी तो लोगों ने उसे जैसे-तैसे बाहर निकाला, लेकिन महिला लोगों के हाथों से छूट कर फिर से गंगा मैया में समा जाना चाहती थी। लोगों ने जैसे तैसे उसे हॉस्पिटल पंहुचाया। यह तो एक नजारा था। ऐसे न जाने कितने नज़ारे कुम्भ के दौरान देखने को मिले। एक महिला अपने तीन महीने के बच्चे को गंगा में डुबकी लगाने के लिए हर की पैड़ी में पहुंची। जब वह बच्चे के साथ गंगा में नहाने का प्रयास कर रही थी तो वहां खड़े पुलिस के जवान ने उसे देखा तो बच्चे को संभाला और महिला को गंगा स्नान का मौका दिया.शायद यह दुनिया का पहला मेला होगा की जब गंगा स्नान के समय धर्म और जाति व्यवस्था की सभी सीमायें तोड़ दी जाती हैं। यह उसी हिन्दू धर्म से जुड़ा धार्मिक मेला है जिस पर वर्ण व्यवस्था को लेकर सबसे ज्यादा आरोप लगाये जाते हैं। मेले के दौरान शायद ही कोई भारतीय हस्ती होगी जिसने गंगा में डुबकी लगा कर पुण्य न कमाया हो। सोनिया गाँधी को भी आना था लेकिन व्यवस्थाओं में खलल पड़ने की सम्भावना के चलते वे नहीं आईं। दलाई लामा, अडवाणी, गडकरी, हेमा मालिनी, अशोक चव्हाण, भजन लाल, मोहन भागवत, चन्द्र चूड सिंह, सुषमा स्वराज, बसुन्धरा राजे सिंधिया, अशोक सिंघल, प्रवीन तोगडिया तो कुछ नाम हैं। आपको बता दें कि कुम्भ मूलतः साधु संतों का मेला है लेकिन उनके दर्शन और गंगा में पुण्य कमाने का मोह ग्रहस्थ भी नहीं छोड़ पाते। माना जाता है कि कुम्भ के मुख्य स्नान में गंगा में डुबकी लगाने के लिए ३३ करोड़ देवी देवता भी हरिद्वार कि हर कि पैड़ी में पहुँचते हैं। मेले में सभी शंकराचार्यों के अलावा दक्षिण भारत के देवताओं के प्रतीक भी स्नान के लिए हरिद्वार लाये गए।चार महीनों तक गंगा के १५ किलोमीटर तक बढ़ाये गए घाटों में शायद ही कोई दिन रहा हो जब भीड़ नहीं दिखी हो। हिमालय की कंदराओं में रहने वाले योगियों ने भी कुम्भ में डेरा डाले रखा। मेले की व्यवस्थाओं के लिए अंतिम दिन १३५ आई पी एस अधिकारी लगाये गए थे, उत्तराखंड की ८० प्रतिशत पुलिस जब कम पड़ गयी तो हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश की पुलिस, पी ऐ सी, आर ऐ ऍफ़ , आई टी बी पी, बी एस ऍफ़ के अलावा डॉग स्क्वाड्स, बम स्क़वाड्स के हजारों विशेषज्ञ तैनात किये गए थे। कुम्भ का अंतिम शाही स्नान निपट चुका है, लेकिन अभी मेला २८ अप्रैल तक चलेगा। लाखों लोग अभी भी मेले में आ रहे हैं। हालत यह हो गयी कि अंतिम शाही स्नान के दिन उत्तराखंड सरकार को पडौसी राज्यों से आने वाले श्रधालुओं को अपना कार्यक्रम एक दो दिनों के लिए टालने का आग्रह करना पड़ा।
कुम्भ मेले में शामिल होने के लिए लाखों कि संख्या में विदेशी मेहमानों ने भी हरिद्वार में डेरा डाला। कुछ तो साधु ही बन गए। गंगा में स्नान के बाद उनका उत्साह देखते ही बनता था। एक मात्र हिन्दू देश नेपाल से भी हजारों की तादाद में हरिद्वार ऋषिकेश पहुंचे।
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