गुरुवार, 7 जनवरी 2010
धोबी का कुत्ता
हमारे पडौस में एक साहब रहते हैं, नाम भी भला सा है उनका। ठाकुर अमर सिंह.... पिछले कुछ दिनों से परेशान थे। कल आ गए हमारे पास। हाथ में साइकिल की सीट लिए हुए। बोले.... ये लो अपनी उधार में दी हुई सीट। मैं परेशान हो गया था बोझ उठा -उठा कर। मैं हैरान परेशान कभी उनका मुंह देखता तो कभी उनके हाथ में पकड़ी सीट को। इससे पहले की मै कुछ बोल पता, उन्होंने सीट को कुर्सी पर रख दिया। अब अमर सिंह जी खाली हाथ थे । मैं समझ भी नहीं पा रहा था की इस हाल में मैं उन्हें क्या कहूँ। कल तक तो छोटी छोटी बातों पर वे किन्ही बच्चन बाबु की धमकी देने लगते थे लेकिन आज साइकिल की एक सीट को लेकर मेरे सामने खड़े हैं... मैंने हिम्मत करके उनसे बात शुरू की...... भाई साहब आखिर बात क्या है....आप बौखलाए हुए क्यों हैं। सिंह साहब बोले --- मेरी उम्र हो गई इस परिवार की हर जरूरत को पूरा करते। मैंने घर के लोगों के मनोरंजन के लिए बच्चन साहब से लेकर अच्छन तक को घर की चौखट पर ला खड़ा कर दिया। किसी के घर मौत हुई तो मै गया बच्चे के मुंडन में मैंने मिठाई बनती। शादी ब्याह में नाचा गाया... मुझे क्या कहा गाया जोकर न । मुझे सब लोग ताने मारने लगे....... भाई जान हद तो तब हो गयी। जब वो मेरी जोरू का दो कौड़ी का भाई गोपालु भी मुझे आँख दिखाने लगा. अब तुम ही बताओ की क्या मुझे उस घर की साइकिल की सवारी करनी चाहिए jo मेरी बीवी के बाप ने मुझे दी थी और सीट मैंने आप से उधर ले कर लगाईं थी । मेरे मुंह से न चाहते हुए भी न निकल गया। फिर क्या था सिंह साहब तो फिर शुरू हो गए उन्हें तो इस बात का कस्ट था की उन्हें घर से निकालने के लिए अपनों ने ही साजिश रच डाली। अब सिंह साहब उस घर से ही बेघर हो गए हैं जिस घर को सजाने सवारने में उन्होंने कई साल लगा दिए। सिंह साहब के साथ एक बीमारी है। वे फ़िल्मी गाने बहुत गाते हैं... शेरो शायरी का भी शौक रखते हैं, माशा अल्लाह उनकी जान पहचान भी अच्छी है....उनके गाने बजाने का शौक़ ही लोगों को नहीं पचा। अब सिंह साहब निहायत अकेले हैं। उन्हें डर भी सता रहा है की जिस छायावती को वे पानी पी - पी कर कल तक कोसते थे बेघर होने की हालत में वह उन्हें मोहल्ले में रहने भी देगी। घर में ही एक दुकान भी खोल ली थी। अब वह भी बंद हो जाएगी..... । और किसी घर के मालिक से तो उन्होंने बनाई ही नहीं तो रात गुजारने के भी लाले पद सकते हैं। सिंह साहब अपने मोहल्ले को छोड़ भी नहीं सकते बहार गए तो गलियों के कुत्ते भी उन्हें काटने के लिए दौड़ेंगे। मोटापा ज्यादा होने के कारन वे दौड़ भी तो नहीं सकते। कभी पार्टियों की शान समझे जाने वाले सिंह साहब को अब तो पार्टियों से भी तौबा करनी होगी। वरना लोग उन वहां भी सवाल पूंछेंगे....जिनका कोई जवाब उनके पास नहीं होगा...क्या बोलेंगे की बीवी ने घर से निकल दिया..... बेचारे सिंह साहब की समस्या का आपके पास कोई समाधान हो तो मुझे भी बताना...... आखिर उनकी चौदराहत का सवाल है.....तब तक जय राम जी की....
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a re bhai gar ka na ghat ka. to samadhan kaisa!
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